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Kusum Narain "Narayani"

नारायणी पुरस्कार

"नारायणी पुरस्कार" विपुल लेखिका , कुसुम नारायण (1931-2015)  की स्मृति में स्थापित किया गया है . उन्होने "नारायणी" के नाम से लगभग डेढ़ सौ लघु कथाएँ और तीन उपन्यास लिखे. यह कहानियाँ हिंदी की जानी-मानी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं जिनमे कहानीकार, निहारिका, कादम्बिनी, मनोरमा, अणिमा, नवनीत​, अपूर्व, सरिता, मुक्ता, धर्मयुग, लक्श्य्वेध, गृहशोभा और सन्चेतना भी हैं.  कई कहानियों और लिपियों को जयपुर, नागपुर और लखनऊ के ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन से प्रसारित किया गया और कुछ का अनुवाद अन्य भाषाओं मे भी हुआ. साथ ही साथ कई कहानियाँ बच्चों के लिये लिखी जो मुख्य रूप से चम्पक मे प्रकाशित हुईं. 

 

 यह पुरस्कार दिल्ली प्रेस समूह के सहयोग से शुरू किया जा रहा है,  और इसका उद्देशय हिन्दी कहानी लेखन को प्रोत्साहित करना और पहचान देना है.  इस के अन्तर्गत प्रति वर्ष एक लाख रुपये तक के पुरस्कार प्रदान किये जायेंगे. पुरस्कार के नियमों की घोषणा हर साल नवंबर माह में की जाएगी.  

 "नारायणी जी की कहानियां मनोरंजन के साथ ही पाठक की बौद्धिक चेतना को जागृत करती हैं. समाज की विशमताओं पर मनोवैज्ञानिक विशलेषण के माध्यम से पाठक की भावनाओं को तथा सामाजिक चेतना को जागरूक करती हैं. उनकी कुछ कहानियों मे असाधारण मानसिक प्रवृत्तियों का विशलेषण एवं मानविय संवेदनशीलता व्याप्त है, साथ ही आधुनिक कहानी-कला का रुप परिलक्षित होता है".                                                                                                                      स्वरूप कुमारी बक्शी

 

"नारायणी जी एक शान्त, सौम्य​, और अन्तर्मुखी स्वभाव की लेखिका हैं जो नागरिक जीवन के मध्यम्वर्गिय सन्स्कारों पर चोट करती हैं; दिनचर्या सम्बन्धी छोटी-छोटी तफ़सीलों को मानवीय सरोकार और सामाजिक करुणा द्वारा दृश्यमान कर देती हैं और इस प्रकार एक मूकभाषी का गाम्भीर्य का परिचय दे जाती हैं. इनके रचनात्मक प्रयासों में सादगी और संजीदगी है जो किसी भी तरह की समकालीन लेखकीय मुद्रा, दंभ, और अहंकार से सर्वथा मुक्त है".                                    राजकुमार सैनी

"अपने आस-पास को देख-सुनकर परखने की क्षमता नारायणी जी में सहज रूप से विद्यमान है. यही कारण है कि समाज की विसंगतियों पर उनका सटीक कटाक्ष होता है और इस कटाक्ष की धार कितनी पैनी हो इसकी मुहताज इनकी लेखनी नहीं है.                                                                                                                                              शकुन्तला वर्मा 

"श्रीमती नारायणी परिवार को धुरी मानती हैं. परिवार से चल कर रास्ता बनाती हुई कहानी समाज तक पहुँचती है. समाज की आड़ी तिरछी रेखाओं को रेखांकित करने का काम करती है. ऐसी विरल दृष्टि लेखक के ही पास होती है. लेखिका की अंतरयात्रा में शामिल हो कर जीवन के संचित छोटे-बड़े अनुभव कथा रुपों मे परिवर्तित हो जाते हैं. बहुत धीमे से कोई या कोई कथ्य लेखिका के साथ चल देता है. उसका ताना बाना बुनती हुइ वह वहाँ रुकती है जहाँ वह छोटी सी विशाल कथा पालते है अपने भाव, कथ्य​, शैली में कथाकार की अपनी ही निर्मित".                                                          सुषमा श्रीवास्तव

उनकी लेखनी से 

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